सफर ए ज़िन्दगी

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31-01-2022 • 16分

हैलो दोस्तों , कैसे है आप सब ? बढ़िया ! अरे बढ़िया क्यों नहीं होंगे मेरे साथ गुफ्तुगू करके तो आपका सारा स्ट्रेस किसी कोने में दुबक कर बैठ जाएगा। और कहते है न की अगर हम दिमागी तौर पर खुश है तो हम हर परिस्तिथि से आसानी से निकल जाते है। तभी तो आपका और मेरा कनेक्शन इस बात का पुख्ता सबूत है की हम दो और दो चार नहीं ग्यारह है।

आज की भागदौड़ की जिंदगी में हर कोई सुकून के पल ढूढ़ता है। किसी ऐसे कंधे की तलाश करता है जो उसको सुन सके उससे बातें कर सके। इसलिए मै सिद्धार्थ नय्यर आपके साथ कुछ पलों को बाँटने ,आपकी कुछ सुनने और सुनाने आया हु। हम आपके साथ ऐसे लोगो की कहानियाँ ,किस्से ,बातें शेयर करेंगे जब जिंदगी में उन्होंने खुद को सबसे ज्यादा अकेला महसूस किया और फिर किस्मत कहिये या मिरकल उन्हें मिल ही गया एक दोस्त, एक कन्धा जिसने ने केवल उनके अकेलेपन को न केवल दूर किया बल्कि जिंदगी जीने की दिशा बदल दी।


हमारे साथ भी तो कई बार ऐसा होता है की कभी पढाई का प्रेशर तो कभी नौकरी की चिंता और कभी सपनों के उधेड़बुन में खुद को खोता हुआ पाना पर आपसे यही कहूँगी की जैसे हर रात के बाद सवेरा होता है तो हर प्रॉब्लम में कही न कही सलूशन छिपा होता है बस जरूरत है आपके थोड़े से साहस की जो आपमें में ही है ।



आज हम आपको एक ऐसे व्यक्तित्व की कहानी के बारें में बताएँगे जिसके आगे गरीबी ने भी अपने घुटने तक दिए। जी हां ,हम बात कर रहे है सुपर 30 के फाउंडर आनंद कुमार की। जिसने ऐसे बहुत से बच्चों के सपनों को पूरा किया जिनके पास खाने तक के पैसे नहीं है। घर नहीं था। था तो सिर्फ सपना। इस समाज में अपने सपने को पूरा करना।अगर आनद कुमार को गरीबो का मसीहा भी कहा जाए तो दोराहे नहीं होगी।


हम आपको आनंद कुमार की सफलता की कहानी इसलिए शेयर कर रहे है क्योकि मै आपको यह बताना चाहता हूँ कि परिस्थितियाँ आपके सामने कैसी भी आए ।आपके हौसले से कम नहीं है। आनंद कुमार ने न केवल' अपनी गरीब परिस्थिति को दरकिनार किया बल्कि न जाने कितने बच्चों को जिंदगी को सवांरा है।


दोस्तों परेशानियाँ हमारी जिंदगी में भी आ सकती है और हमारे आस पास के लोगो की जिंदगी में भी।अपनी प्रॉब्लम्स का तो सभी सोलूशन करते है पर आपके व्यक्तित्व की पहचान तो इसमें है की आप दूसरो की जिंदगी को कैसे बेहतर बनाते है। तो हम आते आनंद कुमार जी की कहानी पर।


हम सभी जानते है की भारत में IIT जैसे टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने का सपना कई छात्र-छात्रायें देखते है। अब ऐसे में उनका मार्गदर्शक बनती हैं – कोचिंग संस्थायें। लेकिन कोचिंग संस्थाओं की भारी-भरकम फीस भर कर पाना हर छात्र के लिए संभव नहीं हो पाता। अब जो लोग दो वक्त का पेट ढंग से नहीं भर पा रहे उनके लिए तो यह सिर्फ सपना देखने की बात रह जाती है।


ऐसे आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों के मसीहा बनकर उभरे हैं –, जो अपने सुपर 30 संस्थान में इन छात्रों को मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं और उनके लिए न सिर्फ टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश का मार्ग, बल्कि उज्जवल भविष्य के मार्ग की ओर बढ़ रहे है।


आनंद कुमार का जन्म 1 जनवरी 1973 को बिहार के पटना जिले में हुआ थाl उनके पिता डाक विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। छोटी सी नौकरी के साथ आनंद कुमार के पिता के लिए उनको किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा पाना संभव नहीं था। उन्होंने आनंद कुमार का दाखिला एक हिंदी माध्यम सरकारी स्कूल “पटना हाई स्कूल’ में करवा दिया।


आनंद कुमार एक प्रतिभावान छात्र थे। उनकी रुचि गणित विषय में अधिक थी। इसलिए स्कूल के दिनों में ही गणित के सवालों को उन्होंने अपना दोस्त बना लियाl वे गणित के कठिन से कठिन सवालों को भी झट से हल कर दिया करते थे। उन्हें हमेशा ऐसा लगता था और बेहतर करना है अभी कुछ और अच्छा बाकी है यह चंद पंक्तियाँ अगर मै उनके विषय में कहुँ तो कोईअतिश्योक्ति नहीं होगी -



जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है ,


हमारे जज्बातों का इम्तिहान अभी बाकी है।


अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीन


आगे सारा आसमान अभी बाकी है।


समय के साथ आनंद कुमार की प्रतिभा निखरती गई और वे गणित में निपुण होते गए। ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने ‘नंबर थ्योरी’ पर एक पेपर सबमिट किया, जिसे मैथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथेमेटिकल गैजेट में पब्लिश किया गया।


उनके पेपर्स की चर्चा देश-विदेश में हुई। जिसकी बदौलत 1996 में उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में एडमिशन के लिए कॉल लेटर आयाl पिता सहित परिवार के सभी लोग आनंद कुमार की इस सफ़लता से बहुत ख़ुश थे। लेकिन जब उन्हें पता चला कि कैम्ब्रिज जाने के लिए 6 लाख रूपये की आवश्यकता पड़ेगी, तो सबकी ख़ुशी निराशा में तब्दील हो गईl उनके परिवार की न आर्थिक स्थिति यहाँ रोड़ा बन गई। कहीं से भी आर्थिक सहायता न मिलने के कारण वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में पीएचडी के लिए दाखिला नहीं ले सके।


इसी दौरान उनके पिता की भी मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद उनके स्थान आनंद कुमार के सामने नौकरी का प्रस्ताव आया क्योकि माता पढ़ी-लिखी नहीं थी और उनके भाई प्रणव कुमार की आयु कम थी। इसलिए यह प्रस्ताव आनंद कुमार को मिलाl लेकिन आनंद सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते थे। उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।


आनंद कुमार के इस निर्णय को माँ और भाई का भी साथ मिला। उनकी माँ को पड़ोस में रहने वाली एक सिंधी महिला ने उड़द के पापड़ बनाने का सुझाव दिया, इस सुझाव को मानकर आनंद कुमार की माँ ने पापड़ बनाने का काम प्रारंभ किया।


वे पापड़ बनाती और शाम को आनंद कुमार और उनके भाई प्रणव कुमार गली-गली घूमकर ‘आनंद पापड़’ के नाम से वह पापड़ बेचतेl इस तरह घर का गुजारा और दोनों भाइयों की पढ़ाई चल रही थी।


कैम्ब्रिज न जा पाने की टीस आनंद कुमार के मन में दबी हुई थीl एक दिन भाई प्रणव कुमार ने उन्हें हौसला दिया कि क्या हुआ जो आप कैम्ब्रिज न जा सकेl जहाँ हैं वहीं से कुछ करने का प्रयास कीजियेl हिम्मत और जूनून हो, तो जहाँ हैं वहीं से आसमान की ऊँचाइयाँ छुई जा सकती हैंl यहाँ रहकर भी आप दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक बन सकते हैंl भाई प्रणव की बात आनंद कुमार के मन में घर कर गई और उन्होंने गणित की ट्यूशन क्लासेस प्रारंभ कीl



आनंद कुमार की कक्षा में प्रारंभ में मात्र 6 बच्चे पढ़ने आयेl लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ने लगीl आनंद कुमार के पढ़ाने के तरीके की चर्चायें होने लगीl वे छात्रों को रुचिकर ढंग से और प्रेरित करते हुए पढ़ाते थेl नतीज़ा ये हुआ कि मात्र तीन सालों में छात्रों की संख्या 6 से 500 हो गईl


इस क्लास का नाम उन्होंने ‘रामानुजन स्कूल ऑफ़ मैथेमेटिक्स रखाl प्रारंभ में 5०० रूपये की सालाना फीस पर यहाँ गणित, रसायन और भौतिकी की शिक्षा छात्रों को दी जाने लगीl यहाँ के छात्रों को IIT और JEE जैसी टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश की परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाता हैl


वर्ष २००० की बात हैl एक गरीब छात्र आनंद कुमार के पास आयाl वह IIT की तैयारी करना चाहता थाl लेकिन उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी और वह ‘रामानुजन स्कूल ऑफ़ मैथेमेटिक्स’की ट्यूशन फीस देने में असमर्थ थाl उसे देख आनंद कुमार को अपना बचपन याद गयाl उन्हें लगा कि पैसे के अभाव में किसी होनहार छात्र का भविष्य बर्बाद नहीं होना चहिये और उन्होंने उस छात्र को बिना पैसे लिए पढ़ायाl उस छात्र का चयन IIT में हो गयाl


उस गरीब छात्र की सफ़लता देख आनंद कुमार ने सोचा कि क्यों न ऐसा एक कोचिंग संस्थान प्रारंभ किया जाये, जहाँ ऐसे ही आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को मुफ़्त में IIT और JEE की तैयारी कराई जायेl


आनंद कुमार और उनके भाई प्रणव कुमार ने तय किया कि एक प्रवेश परीक्षा लेकर 30 गरीब बच्चों को चुना जायेगा और उन्हें पढ़ाने से लेकर रहने-खाने की सारी सुविधायें उनको प्रदान की जायेगीl इन कार्य में आनंद कुमार की माँ भी सामने आई और उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए खाना बनाने की ज़िम्मेदारी अपने हाथों में ले लीl


इस तरह वर्ष 2002 से ‘सुपर 30’ की शुरुवात हुईl इसका सारा मैनेजमेंट आनंद कुमार के भाई प्रणव कुमार देखते हैl ‘सुपर 30 के पहले साल 30 में से लगभग 26 छात्रों का चयन IIT में हुआl ‘सुपर 30 की सफ़लता देखकर कई सरकारी और प्राइवेट संस्थायें वित्तीय सहायता के लिए सामने आई, लेकिन आनंद कुमार ने कोई भी सहायता लेने से इंकार कर दियाl वे अपने दम पर ही इस संस्थान को चलाना चाहते हैंl ‘सुपर ३०’ का मैनेजमेंट ‘रामानुजन स्कूल ऑफ़ मैथेमेटिक्स से मिलने वाली फीस के पैसों से होता हैl



आज ‘सुपर 30 में पढ़ने वाले छात्र देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं और इस तरह यह संस्थान निःस्वार्थ भाव से आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों का भविष्य सुधारने में लगा हुआ हैl


आनंद कुमार के बारे में कहना गागर में सागर में समान है। हम आपको उनकी पुरस्कारों और उपलब्धियों से परिचित करवाते है।


वर्ष २००९ में अमरीकी समाचार पत्र ‘द न्यूयार्क टाइम्स ने आनंद कुमार के बारे में आधे पन्ने का लेख प्रकाशित कियाl


पूर्व मिस जापान और अभिनेत्री नोरिका फुजिवारा ने पटना आकर आनंद कुमार के कार्यों पर एक शॉर्ट फिल्म बनाईl


आनंद कुमार को BBC के कार्यक्रमों में भी स्थान प्राप्त हुआl


आनंद कुमार के ‘सुपर 30 का नाम ‘लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हैl


टाइम पत्रिका ने वर्ष 2010 में आनंद कुमार के गरीब छात्रों की शैक्षणिक उन्नति के लिए चलाये जा रहे संस्थान ‘सुपर 30’ को ‘बेस्ट ऑफ़ एशिया 2010 की सूची में सूचीबद्ध कियाl


न्यूज़ वीक पत्रिका ने आनंद कुमार के कार्यों को देखते हुए ‘सुपर 30’ को चार सर्वाधिक अभिनव संस्थान में स्थान दियाl


पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के विशेष सलाहकार राशिद हुसैन ने ‘सुपर ३०’ को देश का सर्वश्रेष्ठ संस्थान कहा हैl


आनंद कुमार को जर्मनी के सैक्सोनी प्रान्त के शिक्षा विभाग द्वारा सम्मानित किया गया हैl इसके अलावा ब्रिटेन, कोलंबिया, कनाडा के शिक्षा मंत्रालय द्वारा भी आनंद कुमार को सम्मानित किया गयाl


संयुक्त राष्ट्र की मैगजीन ‘मोनोकले’ द्वारा आनंद कुमार को विश्व के २० अग्रणी शिक्षकों की सूची में शामिल किया गया हैl


आनंद कुमार भारतीय प्रबंध संस्थान अहमदाबाद, कई आईआईटी कॉलेजों, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, टोक्यो विश्वविद्यालय तथा स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में अपने अनुभवों के बारे में भाषण दे चुके हैl


आनंद कुमार को महानायक अमिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गयाl


आनंद कुमार के जीवन पर आधारित एक हिंदी फिल्म का भी निर्माण किया किया गया है, जिसका नाम ‘सुपर 30 हैl इन फिल्म में सुपरस्टार ऋतिक रोशन आनंद कुमार का किरदार निभाते नज़र आए थे। इस फिल्म को बहुत प्रसिद्धि मिली।


आनंद कुमार आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों के लिए आनंद कुमार एक मसीहा है, जिन्होंने अपने ‘सुपर 30’ संस्थान के ज़रिये उनका भविष्य सुधारने में अपना जीवन समर्पित कर दिया हैl


तो आज सफर ए जिंदगी में मुझे विश्वाश है की आपको सुपर 30 के फाउंडर की कहानी दिलचस्प लगी होगी। और साथ ही आपको यह भी समझ आया होगा की परिस्थितियाँ के हम नहीं वो हमारी गुलाम है। मतलब अगर आपने कोई काम करने की ठानी है तो कोई ऐसी ताकत नहीं जो आपको रोक सके। पूरे ब्रह्माण्ड की शक्ति आपके अंदर है। आप सब कुछ कर सकते है। तो दोस्तों चलते है कल फिर एक नई शख्सियत के साथ आपकी मुलाक़ात करेंगे तब तक के लिए मास्क लगाइए और सुरक्षित










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