A Story About Madan Mohan | The Most Melodious Music Composer | India Hot Topics | Anyflix

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11-02-2022 • 6分

नमस्कार दोस्तों,

आप सभी श्रोताओं को राहुल नय्यर का हार्दिक अभिनन्दन। एक उम्दा म्यूजिक किसी भी सिनेमा की जान होती है। एक अच्छा संगीत हमेशा श्रोता के मन को पसंद आता है और उसको सुनने वाला श्रोता दशकों दशक उस गीत से जुड़ा रहता है। संगीत नहीं तो जीवन में रस नहीं ऐसा मानने वाले अपने युग के महान संगीतकार मदन मोहन ने ढेरों मन को छू जाने वाले गीतों का निर्देशन किया। आइये आज हम अपने इस पॉडकास्ट में 3 दशकों तक श्रोताओं के दिलों पर राज करने वाले संगीतकार मदन मोहन के बारे में जानेंगे।





मदन मोहन हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। अपनी गजलों के लिए प्रसिद्द इस संगीतकार का पूरा नाम मदन मोहन कोहली है। युवावस्था में मदन मोहन एक सैनिक हुआ करते थे। मदन मोहन शुरुआत से ही संगीत काफी पसंद करते थे। फ़ौज की नौकरी छोड़ने के बाद उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ने का मौका मिला। रेडिओ में कई सालों में काम करने के बाद मदन मोहन को बम्बई जाने का मौका मिला। तलत महमूद तथा लता मंगेशकर से इन्होने कई यादगार गज़ले गंवाई जिनमें 1962 में बानी फिल्म अनपढ़ की मशहूर ग़ज़ल - आपकी नजरों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे ,,, शामिल है।





इनके मनपसन्द गायक मौहम्मद रफ़ी हुआ करते थे। जब ऋषि कपूर और रंजीता की फिल्म लैला मजनू बन रही थी तो गायक के रूप में किशोर कुमार का नाम आया, परन्तु मदन मोहन ने साफ कह दिया कि पर्दे पर मजनूँ की आवाज़ तो रफ़ी साहब की ही होगी और अपने पसन्दीदा गायक मोहम्मद रफी से ही वो गीत गवाया। इस तरह मुहम्मद रफ़ी की दिलों में उतरने वाली आवाज़ और मदन मोहन का जादुई संगीत दोनों ने मिलकर लैला मजनूँ को एक बहुत बड़ी म्यूजिकल हिट बना दिया था।





25 जून 1924 को, बगदाद में मदन मोहन का जन्म हुआ, उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस बलों के साथ महा-लेखाकार के रूप में काम कर करते थे। मदन मोहन ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्ष मध्य पूर्व में बिताए थे। 1932 के बाद, उनका परिवार अपने पैतृक स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के झेलम जिले में लौट आया था। मदन मोहन को अपने दादा-दादी की देखभाल के लिए घर पर ही छोड़ दिया गया, जबकि उसके पिता व्यवसाय के अवसरों की तलाश में बॉम्बे आ पहुंचे थे। उन्होंने अगले कुछ वर्षों तक लाहौर के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की।





लाहौर में रहने के दौरान, उन्होंने बहुत कम समय के लिए एक करतार सिंह नामक संगीतकार से शास्त्रीय संगीत की मूल बातें सीखीं। संगीत में उन्हें कभी कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला फिर भी वे रोज़ प्रैक्टिस किया करते थे। कुछ समय बाद, उनका परिवार मुंबई आ गया जहाँ उन्होंने बायकला में सेंट मैरी स्कूल से सीनियर सेकण्डरी स्कूल की पढाई को पूरा किया। मुंबई में, 11 साल की उम्र से ही उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो द्वारा प्रसारित बच्चों के कार्यक्रमों में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। 17 साल की उम्र में, उन्होंने देहरादून के कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल के संगीत पाठ्यक्रम में भाग लिया जहाँ उन्होंने एक साल का प्रशिक्षण पूरा किया।





वर्ष 1943 में मदन मोहन सेना में द्वितीय लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हुए। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के आखिरी दो साल तक सेना में सेवा की, जब उन्होंने सेना छोड़ दी और अपने संगीत हितों को आगे बढ़ाने के लिए मुंबई लौट आये थे। वर्ष 1946 में, मदन मोहन ऑल इंडिया रेडियो, लखनऊ में कार्यक्रम सहायक के रूप में शामिल हुए, जहाँ वे उस्ताद फैयाज खान, उस्ताद अली अकबर खान, बेगम अख्तर और तलत महमूद जैसे विभिन्न कलाकारों के संपर्क में आए। इन दिनों के दौरान उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के लिए संगीत की रचना भी की | 1947 में, उन्हें ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया जहाँ उन्होंने छोटी अवधि के लिए काम किया। उन्हें गायिकी का बहुत शौक था, और इसलिए 1947 में उन्हें दो गज़ल रिकॉर्ड करने का पहला मौका मिला।





आइये जानते है उनके बेहतरीन संगीतों में से कुछ चुनिंदा गीत ,,,





एक हसीं शाक को दिल मेरा ,,, फिल्म दुल्हन एक रात की 1967


लग जा गए की फिर ये रात हो न हो ,,, फिल्म वो कौन थी 1964


थोड़ी देर के लिए मेरे हो जाओ ,,, फिल्म अकेली मत जइयो 1963


मैं तो तुम संग नैन मिलाके ,,,, फिल्म मनमौजी 1962


उनके ये शिकायत है ,, फिल्म अदालत 1958


कौन आया मेरे मन के द्वारे ,,,, फिल्म देख कबीरा रोया 1957





वर्ष 2004 में फिल्म वीर ज़ारा के लिए उनकी उपयोग न की गई धुनों का इस्तेमाल किया गया था। जो धुन उन्होंने जावेद अख्तर को सुनाई थी। उनकी इस धुन के लिए ही जावेद अख्तर ने इस फ़िल्म का सबसे प्रसिद्ध गीत "लिए तेरे हम है जिए ,,, होंठों को सीए" को लिखा था।





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