डिप्लोमेसी को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है कि सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे प्रोपगेंडा और 'ट्विटर वॉर' को रोका जाए. ये अच्छी बात है कि यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत का सिलसिला जारी है. एक ओर हम देखते हैं कि कुछ आशावादी संदेश समाधान की ओर इशारा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दर्शकों की प्रतिक्रिया पर ध्यान दिया जा रहा है.
यह महत्वपूर्ण है कि यूक्रेन में जल्द से जल्द युद्ध विराम हो - बातचीत के बेहतर बिंदु जारी रह सकते हैं. अगर 'यूक्रेन संकट' का समाधान जल्द नहीं मिलता है, तो निश्चित रूप से यूरोप और नेटो शक्तियों का ध्यान वहां स्थानांतरित हो जाएगा.
यदि यूरोप उस तरह की अराजकता का शिकार हो जाता है जिसे हमने सीरिया या पश्चिम एशिया में विकसित होते देखा है, तो यूरोपीय एकता कहां होगी? इसलिए ज़रूरी है कि यह युद्ध रुके, अन्यथा यह आग किसी को भी अपनी जद में ले लेगी.
भारत का स्टैंड एक परिपक्व स्टैंड है जिसे बनाए रखने की ज़रूरत है. इस संघर्ष में दोनों पक्षों के पास जवाब देने के लिए बहुत कुछ है. आज जिस 'सार्वभौमिक व्यवस्था' की चर्चा हो रही है, और जिस तरह से उसका क्रियान्वयन हुआ है उस बात की जांच होनी चाहिए कि क्या वह वास्तव में उतना ही 'सार्वभौमिक' था जितना की उसके होने का दावा किया जा रहा है. और अगर हम एक सच्चे लोकतंत्र हैं, तो हमें दृष्टिकोण और धारणाओं में आपसी मतभेदों का सम्मान करना चाहिए, न कि उन लोगों पर इतिहास लिखने के दौरान ग़लत का साथ देने का आरोप लगाना चाहिए जो इस समय उनकी राय से अपनी एक अलग राय रखते हैं.