ग्लासगो में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा देशों ने COP26 समिट के दौरान दो सप्ताह तक जलवायु परिवर्तन पर चर्चा की. इस कार्यवाही पर Covid 19 महामारी और चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर की छाया पड़ी। यूरोपीय संघ भी हाल फिलहाल ऊर्जा संकट से गुज़र रहा है जिसने इस दौरान पूरी समस्या को बढ़ाने का ही काम किया है. इसलिए देखा जाए तो COP26 के परिणामों पर निराशा अप्रत्याशित नहीं है.
वास्तव में कहा जाए तो, क्लाइमेट एक्शन अब ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के बारे में नहीं रह गया है. यह अब व्यापार, प्रौद्योगिकी और भू-राजनीतिक मुद्दों से जुड़ा एक भू-राजनीतिक मुद्दा बन गया है.