एक बहुध्रुवीय देश में बहुपक्षीयता को फिर से स्थापित करने का अमेरिका का संकल्प है,जो विश्व में गठबंधनों की महत्त्व पर ज़ोर देता है,जहां लगभग सभी देश ऐसी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जो महज़ सीमाओं तक सीमित नहीं है .एक अधिनायकवादी विश्व और एक (नियम आधारित)लोकतांत्रिक विश्व के बीच सीमा रेखा खींच दी गई है और अमेरिका के लिए चीन को, सबसे बड़ी चुनौती के रूप में पहचाना गया है. यही नहीं विश्व व्यवस्था अमेरिका की मित्रता के अधीन है.चूंकि अब कूटनीति पर ज़ोर देने की मांग की जा रही है,ऐसे में चीन पर उसका रुख़ क्या होगा?
चीन ने अपने दो बड़े सत्रों का आयोजन किया है और नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी)ने हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र को कमज़ोर बनाने की कोशिशें की हैं.एनपीसी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के फैसलों का ही अनुसरण करती है.चीन के सामने ये दुविधा है कि वो वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्वयं को इकलौती शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है.