अफ़ग़ानिस्तान के ताज़ा और लगातार बदलते हालात भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये ख़तरनाक साबित हो सकते हैं. इसकी वजह अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता की चाबी एक कट्टरपंथी संगठन के हाथों में होना है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आख़िर भारत करे तो क्या करें? यहां भारत के साथ एक मूलभूत समस्या जुड़ी है.
भारत उस ‘दोहा’ शांति वार्ता का हिस्सा नहीं था, जिसके तहत अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता हुआ और अमेरिकी सेना की वतन वापसी की शुरूआत हुई. भारत को उसमें शामिल न किया जाना, कहीं न कहीं उसके लिये एक निराशा की वजह बनी. ये सब कुछ आपस में मिलकर अब भारत के लिये ऐसे हालात बन गये हैं, जहां उसे अपनी सारी ताक़त और संसाधन के लिये पश्चिम का मुंह ताकना पड़ रहा है. इससे मुमकिन है कि क्वॉड भी काफी हद तक सामुद्रिक क्षेत्र में कमज़ोर पड़ेगा. अफ़ग़ानिस्ता में स्थिरता भारत के लिये बेहद ज़रूरी है, क्योंकि तभी वो क्वॉड में रचनात्कमक योगदान कर पायेगा. भारत ने लगभग तीन बिलियन डॉलर की रकम का अफ़ग़ानिस्तान में निवेश किया है, वहां की आधारभूत संरचना के निर्माण में मदद करने के लिये न कि हथियार और युद्ध के मक़सद से. और यही वो वजह है जिस कारण भारत और भारतीय नागरिकों को अफ़ग़ानी नागरिकों के बीच पसंद किया जाता रहा है. इसलिये ये क्वॉड के अन्य देशों के हित में होगा कि वो इस बात का समर्थन करें कि अफ़ग़ानिस्तान के विकास में आने वाले दिनों में भी भारत की महत्वपूर्ण भूमिका बनी रहे.